۵ آذر ۱۴۰۳ |۲۳ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 25, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा/ यह आयत हमें सिखाती है कि सुधार और प्रचार के लिए नम्रता और ज्ञान का मार्ग अपनाना आवश्यक है। मतभेद पैदा करने वाले और दिलों पर असर करने वाले शब्दों का प्रयोग करने वालों से दूर रहें ताकि सुधार का रास्ता खुला रहे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

أُولَٰئِكَ الَّذِينَ يَعْلَمُ اللَّهُ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُلْ لَهُمْ فِي أَنْفُسِهِمْ قَوْلًا بَلِيغًا.   उलाएकल लज़ीना यअलमुल्लाहो मा फ़ी कोलूबेहिम फ़आरिज़ अन्हुम व अइजहुम व क़ुल लहुम फ़ी अन्फोसेहिम क़ौलन बलीग़ा (नेसा 63)

अनुवाद: ये वो लोग हैं जिनके दिलों को ख़ुदा सबसे अच्छी तरह जानता है, इसलिए इनसे दूर रहो, इन्हें सलाह दो और मौके के मुताबिक इनसे बात करो।

विषय:

मुनाफ़िक़ों के दिलों का हाल और पैग़म्बर की सलाह का हिकमत भरा अंदाज़

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरह नेसा में उन मुनाफ़िक़ो के बारे में नाज़िल हुई थी, जो ऊपरी तौर पर इस्लाम को मानते थे लेकिन दिल से ईमान नहीं लाते थे। उनका रवैया मुस्लिम समुदाय के लिए हानिकारक था और उन्होंने आंतरिक अराजकता पैदा करने की कोशिश की। अल्लाह तआला उनके दिलों के इरादों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और पैगंबर (स) को उनके साथ समझदारी से पेश आने का आदेश देते हैं।

तफ़सीर:

1. ईश्वरीय ज्ञान: अल्लाह हर इंसान के दिल की हालत और इरादे को जानता है। यहां पाखंडियों के हृदय की दुर्भावना और उनके छल का वर्णन किया गया है।

2. हिकमत अमले: पैगम्बर को इन पाखंडियों से दूर रहने का आदेश दिया गया। उनके झूठे आचरण में न पड़ें बल्कि उन्हें समझाते रहें।

3. क़ौले बलीग़: उपदेश की ऐसी शैली अपनाएं जो उनके दिलों पर असर करे, उन्हें उनकी गलतियों का एहसास कराए और उनके सुधार का साधन बने।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1. अल्लाह का ज्ञान: अल्लाह दिलों की हालत से वाकिफ है, इसलिए किसी को उसकी शक्ल से नहीं आंका जा सकता।

2. भविष्यसूचक ज्ञान: कलह और प्रलोभन पैदा करने वाले लोगों के साथ नम्रता और अंतर्दृष्टि से व्यवहार करना चाहिए।

3. सुधार: सलाह की शैली ऐसी होनी चाहिए जो प्राप्तकर्ता को उसकी वास्तविकता से अवगत कराए और उसे बदलने के लिए प्रेरित करे।

परिणाम:

यह आयत हमें सिखाती है कि सुधार और उपदेश के लिए सज्जनता और ज्ञान का मार्ग अपनाना आवश्यक है। मतभेद पैदा करने वाले और दिलों पर असर करने वाले शब्दों का प्रयोग करने वालों से दूर रहें ताकि सुधार का रास्ता खुला रहे।

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सूर ए नेसा की तफसीर

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